Saturday, March 27, 2010

ब्लॉग पर बोलें बेबाक


यहां आप खुलकर शिकायत कर सकते हैं। किसी की तारीफ के पुल बांध सकते हैं, कोरी कल्पनाओं को सच के सांचे में ढाल सकते हैं। यही तो खासियत है ब्लॉगिंग की दुनिया की, यहां रूठने-मनाने की रवायत नहीं होती। यहां आप बेबाक होकर दिल के गुबार को शब्दों में पिरो सकते हैं। अपनी खुशियां बांट सकते हैं, अपने दर्द बयां कर सकते हैं। पहचान बता सकते हैं तो छिपा भी सकते हैं....

ब्लॉग पर बोलें बेबाक
शाम के चार बजे हैं। लविवि परिसर से छात्रों की भीड़ छंट चुकी है, पर जेके ब्लॉक के सामने भूगर्भ विभाग की सीढ़यों पर बैठी निदा अपने लैपटॉप पर कुछ टाइप करने में व्यस्त हैं। साथ में बैठी उनकी सहेली के चेहरे पर उत्साह साफ दिख रहा है। व्यस्तता की वजह पूछने पर निदाबताती हैं कि ५मई को उनकी शादी है और वह अपने ब्लॉगपर यह इंफार्मेशन अपडेट कर रही हैं। लंदन में रहने वाली अपनी दोस्त की राय जानने के लिए उन्होंने ब्लॉगपर शादी के लहंगे का फोटो भी अपलोडकिया है और मेंहदी के डिजाइन के बारे में सुझाव भी मांगे हैं।
सिर्फ निदा ही नहीं, उसकी तरह शहर के हजारों युवा इस समय ब्लॉगपर अपने दिल की बात लिख रहे हैं। ब्लॉगिंग युवाओं के लिए अभिव्यक्ति का एक पसंदीदा माध्यम बन चुका है। इसकी सबसे बड़ वजह यह है कि यहां आप खुलकर शिकायत कर सकते हैं। किसी की तारीफ के पुल बांध सकते हैं। कोरी कल्पनाओं को सच के सांचे में ढाल सकते हैं। यहां रूठने-मनानेकी रवायत नहीं होती। आप अपने दिल के गुबार बाहर निकाल सकते हैं। ब्लॉगपर आप अपने हर एहसास को साझा कर सकते हैं। इसके लिए आपका लेखक होना भी जरूरी नहीं। यहां कोई सेंसर या पब्लिशर नहीं है। आप खुद रचनाकार हैं और खुद ही प्रकाशक। शायद इसीलिए ब्लॉगिंग करने वाले युवाओं की तादाद में खासी बढोतरी हुई है। कुछ युवा अपने नाम से ब्लॉगलिखते हैं तो कुछ अनाम रहकर बस हाल-ए-दिल बयां कर देते हैं।
कश्मकश जिंदगी की
लविविसे पोस्ट ग्रेजुएशन कर रहे अभिषेक के ब्लॉग च्मेरी डायरी के कुछ फटे हुए पन्नेज् में इस प्रतिस्पर्धी युग में आगे रहने की ललक, भीड़ में अकेले होने के अनुभव और देश-दुनियाकी गतिविधियों पर एक युवा की सोच साफ दिखती है। गंभीर विषयों पर उम्दा लेखन, उस पर अभिषेक की पूर्णतया बेरोजगार मीडिया एक्सपर्टकी कैच लाइन एक बारगी सोचने पर मजबूर करती है। कोपेनहेगन से लेकर बीयरऔर बिकनी जैसे बोल्ड विषय उनके ब्लॉगका हिस्सा हैं। वहीं निजी अनुभवों की एक निराली दुनिया भी है, जहां रिश्तों की कश्मकश से लेकर पड़सी के कुत्ते की भी दास्तां हैं। उनका ब्लॉगफॉलो करने वालों में युवाओं से लेकर टीचर्स, मीडिया एक्सपर्ट और कुछ साहित्यकार भी हैं। उनके ब्लॉग पर टी-ट्वेंटी का रोमांच चरम पर पहुंचता है तो बचपन में घर के जूठे बर्तनों में रोटियां तलाशती बूढ़ दाई मां के आंसू भी जगह पाते हैं। उदाहरण देखिए,
कभी-कभार आती थी,
वो बूढ़ दाई मां
हमारे जूठे बर्तनों में
अपनी रोटियां तलाशते हुए
जितनी शिकायत थी हमें जिंदगी के हर निवाले से
वो खुशियां लूटती थी
चाय के उस एक प्याले में..
.
डर लगता है डोर टूटने से जी...
एमबीए स्टूडेंट निष्ठा को भी रिश्तों में कड़वाहट से डर लगता है। वह प्यार, दोस्ती जैसे रिश्तों की डोर को टूटने से बचाने की कोशिश अपने ब्लॉग के जरिए करती हैं। वह ब्लॉग पर हर रिश्ते पर बेबाक राय जाहिर करती हैं। बिजनेस माइंडेड निष्ठाआज के जमाने के रिलेशनशिपको बखूबी समझती हैं। उनके च्व्हेन योर लव चेंजेसज्,च्ह्वाट टू डू व्हेन यू हैव ए ब्रेकअपज्और च्हनी, इज देयर ए प्रॉब्लमज् जैसे पोस्ट दिलों को टूटने से बचाने और टूटे हुए रिश्ते से उबरने के सुझाव देते हैं।
नाटक से ब्लॉग तलक
रंगमंच पर कई रोल निभा चुके प्रवीण द्विवेदी यूं तो अपने ड्रीमरोल की तलाश में हैं पर उनके ब्लॉग च्प्रवीण द्विवेदी की दुकान, तीसरी गली, यहीं कहीं आपकी दुनिया के आसपासज् पर उनके सौ दर्द उनके एहसास की बानगी है तो पांडुलिपियां और त्रिवेणी उनकी रचनात्मकताऔर कलात्मकता का परिचय देती हैं। वह अपने ब्लॉगपर बहुत बड़ मुद्दों की बात नहीं करते, बस सामान्य शब्दों में बदल रही सोच को बता देते हैं। ब्लॉगपर पुरानी मोटरसाइकिल में साइकिल के पहिये वाली फोटो लगा कर बड़ खूबी से लिख देते हैं हमारे देश में इच्छाएं पैसे से बहुत बड़ हैं और जुगाड़ देश की अमूल्य निधि है।
एक नीम का पेड़/ वो गली के उस मोड़ पर/चंद पान की दुकानें /और चाय का ढाबा/ गली के कुछ बदमिजाज लड़के/ और हॉस्टलों की तारिकाओं का आना-जाना/चीजें बदल रही हैं पर रफ्तार आज भी धीमी है/
लोग पहचानते हैं सबके चेहरे/ कुछ के नहीं भी/एक छोटा मंदिर भी है उसी के नुक्कड़ पर/जिसके बरामदे में कुछ उम्र दराज लोगों का जमघट लगता है/ गुजरे जमाने की बातें, यादें और बतकही/साथ चाय के कुछ गरम प्याले
... जैसी उनकी पंक्तियां बहुत कुछ कह जाती हैं।
जाने क्यूं लोग ऐसा सोचते हैं...
गीतांजलि जिंदगी के मंच पर खुशियों की रोशनी के लिए लव से ज्यादा लक को जरूरी बताती हैं। एक निजी कंपनी में कार्यरत गीतांजलि एक कहानी के जरिए उलझनों में फंसी एक ऐसी लड़की की दास्तां बयांकरती हैं, जो घरवालों की उम्मीदों और अपने सपनों के बीच खुद को अकेला महसूस कर रही है। उनके लेखन में बिखरते रिश्तों का दर्द साफ झलकता है। उनके ब्लॉग पर उनके दिल का गुबार है तो उसे बांटने के लिए उनके कुछ फॉलोवर भी।
वर्तमान में हिंदी ब्लॉगर्स की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है। उड़नतस्तरी, कबाड़खाना, मेरी टूटी कलम, मेरी नजर मेरा नजरिया, मोहल्ला, युवा, डाकिया बाबू, प्राइमरी का मास्टर जैसे हिंदी ब्लॉग्स खासे चर्चित हो चुके हैं। हिंदी के अलावा मैथली और भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय भाषाओं में भी ब्लॉग लेखन शुरू हो गया है। भोजपुरी का चौरा-चौरी डाट काम , मैथली में माटिक लोक, टोला, हेलो मिथिला और मैथिली लोकगीत जैसे ब्लॉग चर्चा में हैं।
एक नजर में ब्लॉग
१७दिसम्बर १९९७को जॉर्नबार्जर ने च्वेबलॉगज् शब्द दिया था, जिसे मई १९९८में पीटर मेरहोल्ज ने मजाक में वी ब्लॉगमें विभाजित कर दिया। इसके बाद ही ब्लॉग शब्द अस्तित्व में आया।
ब्लॉगकिसी व्यक्ति विशेष द्वारा पोस्टोंको निरंतरे व्यवस्थित किए जाने की प्रक्रिया है। ब्लॉग एक इंटरैक्टिवमीडियम है। इसपर टेक्स्ट, पिक्चर, वेबपेजेजके लिंक्सके साथ पसंदीदा ब्लॉगों से भी जुड़ जा सकता है।
वर्तमान समय में भारत में लगभग तीन करोड़ ५४लाख नेट यूजर्स हैं, जिसमें से करीब ७५ प्रतिशत लोग ब्लॉगपढ़ रहे हैं। इसमें वे लोग शामिल हैं, जो ब्लॉग लिखते हैं। पिछले साल के मुकाबले इसमें १७प्रतिशत बढोतरी हुई है।

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